छंद:-मनहरण घनाक्षरी
प्रातःकाल की बेला में,खड़ी यमुना किनारे,
गागर भरतीं राधा,लेतीं नदी जल है।
आरती माधव संग,बोल उठी अंग-अंग,
केशव,मोहन मेरा,आराध्य ही बल है।
वाणी मधुर-मधुर,बहती अमृत धार,
कृष्ण को सुहातीं आज,संगत का फल है।
भजन कीर्तन रोज,हर दिशाओं में ओज,
भक्ति में तल्लीन रहें,आंनद का पल है।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
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