इंसान बना हैवान ,
कि धरती डोल उठी ।
न रही मानवता की शान,
कि धरती बोल उठी ।
जहाँ -जहाँ फूल खिलते थे ,
बो दिए हमने काँटे ।
प्रेम की जगह घृणा हुई ,
तब लगा गाल पर चांटे ।
मद्य , मांस , चर्म के पीछे ,
न रहा तनिक भी ध्यान ।
मानवता को धूल चटाने ,
बना मानव शैतान । इंसान —-
सत्कर्म ही मनुज सम्बल था ,
पर न रहा तनिक भी ध्यान ।
सत्प्रवृत्तियों से ज्यों नाता तोड़ा ,
सब घायल हुआ विधान ।
मद , मत्सर का जगह न कोई ,
फिर भी लगा उसी पर ध्यान ।
असली मर्म न जन्म का समझा ,
पलट गया सब बान । इंसान बना ——
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर
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