तन की पीड़ा भूल चुका पर ,
मन की पीड़ा भुला न पाया ।
सेवा अवसर आने पर भी ,
मन को इसमें लगा न पाया ।
पथ अनेक जीवन मूल्यों के ,
स्वयं वहाँ तक पहुँच न पाया ।
तन की पीड़ा भूल चुका पर ,
मन की पीड़ा भुला न पाया ।
कोकिल -कंठ सुर रहने पर भी ,
मधुर तान को छेड़ न पाया ।
भटकन ही नियति थी मेरी ,
भेदभाव को खूब बढ़ाया ।
तन की पीड़ा भूल चुका पर ,
मन की पीड़ा भुला न पाया ।
मोहमाया में पड़ा रहा पर ,
परमार्थ ज्ञान को पास न लाया ।
जीवन जाने से पहले ,
अपना – पराया खूब कमाया ।
तन की पीड़ा भूल चुका पर ,
मन की पीड़ा भुला न पाया ।
कर्म ही जीवन का सम्बल ,
पथ।रूढ भी रह न पाया ।
मोल -तोल का भाव लिए मन ,
शांति का संदेश न भाया ।
तन की पीड़ा भूल चुका पर ,
मन की पीड़ा भुला न पाया ।
रचयिता:-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )