जिन्हें विश्वास हो खुद पर, सदा आगे वो बढ़ जाते।
करते कर्म की पूजा,कर्मयोगी वो कहलाते।
नहीं करते शिकवा वो,नहीं कोसते हैं नियति को।
बनाकर राह पर्वत में,दशरथ मांझी बन जाते।
रखते नहीं आसरा वो, अकेले वृद्धि को पाते।
अपने ही बलबूते ये, सितारें जमीं पर लाते।
देख इनकी तरंगें,फरिस्तों को आना होता है।
अपने कर्म से अपनी,अलग पहचान ये बनाते।।
ऐसे ही लोगों के मुट्ठी में, किस्मत होता है।
कर्महीन होते हैं वो जो, किस्मत को रोता है।
हम सब में ईश्वर ने,भरा है बराबर ऊर्जा को।
काटता है हर मानुष, वही जो उसने बोता है।।
अंधेरे से आकुलाकर, दिवाकर कब सोता है।
नई ऊर्जा संग लेकर,सवेरे नित्य उगता है।
मिलेगा ना फिर से तुझे,दुबारा जन्म ऐ प्यारे।
क्यों व्यर्थ बातों में, अमूल्य जीवन को खोता है।।
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
शिक्षिका
मध्य विद्यालय, बाँक, जमालपुर
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