सम्बल तप -त्याग का ,
चला रहा संसार को ।
कर्मपथ निष्कंटक नही,
बतला रहा निज सार को ।
है दिग्भ्रमित होता मनुज ,
बुद्धिबल छीजती है जहाँ ।
संदर्भ यदि विचलित न हो ,
मिलती सफलता है तहाँ ।
श्रेष्ठ कर्मों का फलितार्थ भी ,
निहितार्थ से जुड़ता यहाँ ।
देव -देवियों के लिए फल ,
कर्म बिन मिलता कहाँ ।
पथ कर्म का निष्कंटक नही ,
यह सृजन बीच संग्राम है
देहधारियों के लिए यह बड़ा ,
सुख-दुःख का अविराम है ।
यह संसार तपोवन बस्ती है ,
रहे हाथ सदा निज कर्मतल में ।
बनके यशस्वी यतन हित मे ,
रखो पग सुंदर समतल में ।
रचयिता:-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर)
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