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कसक – गौतम भारती

Gautam

ख्वाहिशें रह गई ,
दिल में चुभता रहा ।
बनके बे ज़ुबाँ
तुम्हें तकता रहा ।।
आश में मैंने
जो पलकें बिछाई। 2
आहिस्ता ही सही
पर ये दुखता रहा ।।
ख्वाहिशें………….,
दिल में……………।

ना मिली मंजिलें ,
ना मिले रास्ते ।
ठोकरें दर-ब-दर मैं
खा रहा तेरे वास्ते।
अब तुम ही बताओ
करूं मैं तो क्या ?
जान हथेली पे रख लूँ
या जाऊँ तुम को भुला ।।
जब कभी सोचता हूं
तुम्हें दिल ही दिल में। 2
आहिस्ता ही सही
पर ये टिसता रहा ।
ख्वाहिशें रह………,
दिल में …………….।।

जग-जग के रातों में
सपने सजाए ।
नसीब थी काली
या भाग्य के साये ।
एक-दो अंक से ही
और तू हो गए पराये ।
तू हो गए पराये ।
सपनों की ज्वाला में2
वर्षों जलता रहा ।
कर हाथों को ऊपर
उन्हें तकता रहा ।
उन्हें तकता रहा ।
ख्वाहिशें रह गई ,
दिल……………।
बनके………….,
तुम्हें…………….।।

वाह!
क्या ओहदा है ?
यही सोच कर के
कदम मैं बढ़ाया ,
और दिल में बसाया ।
चुभते रहे पैरों में कांटे,
फिर भी कभी ना
शोर मचाया 2
उन्हें क्या खबर है ?
चाहूं किस क़दर मैं?
हर एक पल वो लम्हा
जियूं मर – मर मैं ।
नाम औरों के लाल 2
बत्ती यूं जलता रहा…
ख्वाहिशें रह ……..,
दिल………………।
आश में……………
जो पलकें………..
आहिस्ता …………..
पर ये……………..।।

सारे हसीन हसरतों को,
दिल में दफन कर गया हूं।
सांसें चल रही है लेकिन
जिंदा हूं पर मैं मर गया हूं।।
पीड़ित हो ये मन मेरा 2
सिसक-सिसक के कह रहा..
ख्वाहिशें रह गई ,
दिल………………।
बनके बे जुबां..
तुम्हें……………….।।
आश……………..।
आहिस्ता………….।।

सादर आभार🙏
गौतम भारती
बनमनखी,पुर्णिया

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