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कहाँ गए वो दिन – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

कहाँ  गए  वो   दिन ?

जिसकी दास्तां  इतनी करीब थी ।

थे  लोग  प्यार  में ऐसे  पगे ,

जहाँ हर खुशियाँ नसीब  थीं।।

प्यार   के  हर  बोल  पर ,

मिटती थी हर परेशानियाँ

प्यार  की  हर  अदा   पर ,

न रूखी रहती थी  थालियाँ ।।

भेद न रखते  थे  दिल में कभी,

न थीं कहीं भेद की निशानियाँ।

खुशियों में समेट ली  जाती थीं ,

किसी  की  भी  परेशानियाँ ।।

मुश्किलों में भी  साथ चलने की,

परम्परा  कभी जाती  नहीं थी।

था भाव  अपनेपन   का  सदा,

प्रेम  दिल  से कभी खाली  न था।।

वचन  निभाना  जानते   थे,

थे वचन के वे  पक्के अमीर।

नेक   दिल  के  इंसान होते ,

न कोई था दिल का फकीर।।

न मन में  खुदगर्जी  थी तनिक भी ,

न लोग स्वार्थ  में  संलग्न थे ।

न जानते थे अधिक बातें बनाना,

निज  कर्त्तव्य  में अति  निमग्न  थे।।

बूढ़े माँ- बाप की इज्जत थी घर में,

बड़ों का  मान था,  सम्मान था।

घर  खुशियों   से था  दमकता,

न किसी के प्रति असम्मान   था।।

अपनी विरासत  और  संस्कृति  से ,

लोगों  का बेहद  ही  लगाव  था।

वृद्धाश्रम की कोई कल्पना  न थी ,

न  बड़े  बूढों  से  कोई   दुराव  था ।।

आज बाप, बेटे पर न  यकीन  करता ,

हाय !   कैसी   यह   बयार    है !

बेटा,  बाप  का न ख्याल रखता,

हाय ! इस संबंध को  धिक्कार है!

आज  क्या  से क्या  हो  गया,

समझ में तनिक भी आता नही है।

जिस माँ- बाप ने पाला पोसा यत्न से ,

आज  कद्र  उसका होता  नहीं  है।।

है क्या  पता   उसके  पिता ने ,

यत्न उसके लिए कितने  किए थे ?

अपने  सपनों  को जड़ से उजाड़ ,

उसके  सारे   सपने  बुन दिए थे।।

आज  स्वार्थ ही सर्वत्र  जगत में ,

सर्वत्र  स्वार्थ  की  तस्वीर  है।

लोग अधिक बातें बनाना  जानते

अब  केवल  बात की  जंजीर है।

अमरनाथ  त्रिवेदी

पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा , जिला- मुजफ्फरपुर

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