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कुंडलिया- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

माता की आराधना, करो सदा प्रणिपात।
अंतर्मन के भाव में, भरो नहीं आघात।।
भरो नहीं आघात, कर्म को सुंदर करना।
मन की सुनो पुकार, पाप को वश में रखना।
पढ़कर पुण्य पुराण, करो देवी जगराता।
महिमा अपरंपार, कष्ट को हरती माता।।

पावन दुर्गा रूप का, करूँ सदा मैं ध्यान।
बालक मैं नादान हूँ, दूर करो अभिमान।।
दूर करो अभिमान, भवानी तुम ही मेरा।
मेटो तम अज्ञान, करूँ नित अर्चन तेरा।।
जप लूँ तेरा नाम, रूप सुंदर मनभावन।
भरो हृदय सद्बुद्धि, करो माँ मुझको पावन।।

माता के दरबार को, नित्य सजाएँ आप।
निर्मल सौम्य विचार रख, करें नाम का जाप।।
करें नाम का जाप, मंत्र महिमा बतलाएँ।
होगा बेड़ा पार, यही सबको सिखलाएँ।।
होगी सबकी जीत, हृदय से जोड़ें नाता।
चरण कमल प्रणिपात, विमल मन करिए माता।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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