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कुंवर सिंह: बलिदान की गाथा -सुरेश कुमार गौरव

जय-जय वीर कुंवर बलिदानी,
भारत माँ के भक्त स्वाभिमानी।
अस्सी वर्ष में भी थी ललकार,
शौर्य-ध्वजा उठा कर दी यलगार।।

शस्त्र उठाया, धर्मयुद्ध रचाया,
फिरंगी अंग्रेज़ों को हरकाया।
धरती गरजी, गगन पुकारा,
“अब न होगा तेरा गुज़ारा!”।।

बिहार भूमि की वह शान थे,
सच्चे रघुवंशी की जान थे।
जगदीशपुर की पावन निशानी,
गूँजे जिसकी अमर कहानी।।

1857 की प्रथम क्रांति में,
जाग उठे वह प्रदीप्त कांति में।
पल-पल जीवन हुआ समर्पण,
भारत माँ के चरणों अर्पण।।

कट गया हाथ, पर न रुके वो,
धर्मयुद्ध में आगे बढ़े वो।
गंगा में जब हाथ बहाया,
बलिदानी का दीप जलाया।।

सत्य, साहस, त्याग, समर्पण –
कुँवर सिंह का यश है अर्पण।
हर पीढ़ी को राह दिखाते,
बलिदानों से गीत रचाते।।

हे कुंवर सिंह, नमन तुम्हारा,
तेज तुम्हारा, दीप हमारा।
जब-जब यह राष्ट्र पुकारेगा,
तब-तब नाम तुम्हारा गाएगा।।

सुरेश कुमार गौरव

प्रधानाध्यापक

उ.म.वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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