थाम तुम्हारी उँगली पापा!
चलना सीखा डगर-डगर।
और तुम्हारे कंधों पर चढ़
देखा मैंने गाँव-शहर।
अपनी क्षमता झोंकी तुमने
मुझको सतत पढ़ाने को
सभ्य आचरण भी सिखलाया
लोगों से बतियाने को
रहे पसीना सदा बहाते
थके बिना तुम पहर-पहर।
थाम तुम्हारी उँगली पापा!
चलना सीखा डगर-डगर।
सबकी चिंता अपने माथे
लेकर के मुस्काते थे ,
गलती होने पर भी सबको
कितना कुछ समझाते थे ।
अपना-अपना काम करो सब
क्यों करते हो इधर-उधर।
थाम तुम्हारी उँगली पापा!
चलना सीखा डगर-डगर।
घरभर को तुम कहते फिरते
सूरज-सा ही चमको तुम ,
महापुरुष की गाथा पढ़कर
उन-सा ही फिर दमको तुम ।
अच्छी बातें सिखलाने को
दिखलाये तुम नदी- नहर।
थाम तुम्हारी उँगली पापा!
चलना सीखा डगर-डगर।
पहुँचें जहाँ तलक पापा हम ,
त्याग तुम्हारा ही तो है,
मेरी साँसों में बसता
अनुराग तुम्हारा ही तो है।
पास-पास देखूं तुमको
मेरी आंखें हों जिधर-जिधर।
थाम तुम्हारी उँगली पापा!
चलना सीखा डगर-डगर।
मुकेश कुमार मृदुल
विद्यालय अध्यापक (11-12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय दिघरा
पूसा, समस्तीपुर, बिहार
मोबाइल – 9939460183