रोज सबेरे चूं -चूं करके हम सबके आंगन आती है।
दुनिया के सोए मानव का हृदय स्पंद जगाती है।।
एक एक तिनका को चुनकर मेहनत से घर वो बनाती है।
घर- घर जाकर चुगकर दाना बच्चों को वो खिलाती है।।
मां पिता का धर्म हो कैसा ये जग को बतलाती है।
मेहनत से तू ना घबराना हम सबको समझाती है।।
बारिश, धूप, तुफानों से परिजन को सदा बचाती है।
कर्तव्य परायणता हो कैसी ये जग वो बताती है।।
फुदक- फुदक कर दाना चुनती,शाम में घर को आती है।
समय पे सारा काम करो ये हम सबको कह जाती है।।
हिंसक पशु को देख- देख वो जोरों से शोर मचाती है।
सब मिलकर हो एकजुट वह एकता का पाठ पढ़ाती है।।
कहां गयी वो प्यारी गोरैया,नजर नहीं कहीं आती।
बचपन की यादों में हीं वो, फुदक -फुदक आती जाती।।
विलुप्त हो रही जग से चिड़िया,गंगा भी अब सूख रही।
वन्य प्राणी भी कम हो रहे, दुनिया अब दुनियां न रही।।
मानव अपने सुख के खातिर, पर्यावरण से खेल रहा।
इसलिए तन मन धन से वो ,अब नाना दुख है झेल रहा।।
पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी कहती मनु सुन ओ नादान।
प्रकृति से खिलवाड़ करोगे तो जाएगी इक दिन तेरी जान।।
खुलकर उड़ती नील गगन में, दुनियां का सैर कराती है।
वह जग के बंदी मानव को, मुक्ति का मंत्र बताती है।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनु कुमारी,विशिष्ट शिक्षिका, मध्य विद्यालय सुरीगाँव, बायसी पूर्णियाँ

