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जमीनी आदमी ठहरा – एस.के.पूनम

S K punam

विधाता छंद।

विनय से हाथ जो जोड़ा,
झुकाया शीश भी अपना।
लिए मुस्कान, हूँ हर्षित,
रहा मैं देखता सपना।।

सजग हैं भाव भी मेरे,
मलिनता दूर है मन से।
गुज़ारा है दिवस ऐसे,
किया सेवा सदा तन से।।


(2)

रखूँगा खुश सदा सबको,
भले ही लक्ष्य है छोटा।
कई हैं रूप परहित के,
नहीं संस्कार से खोटा।।

किसी को क्यों कहूँ नीचा,
यही तो सोचना होगा।
समय के साथ ही चलना,
सफलता का सबल होगा।।


(3)

प्रसाधित द्वार पर चाकर,
समय पर काम भी देता।
बिना श्रम के न कुछ भाता,
सदा श्रमदान में लेता।।

झुकाएगा कला मेरी,
लगाया लोभ पर पहरा।
डटा रहता मुसीबत में,
जमीनी आदमी ठहरा।।

एस.के.पूनम।
प्रा.वि.बेलदारी टोला,फुलवारी शरीफ, पटना

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