जनक के राज्य में ऐसा भयंकर ग्रीष्म आया था।
सरोवर, खेत सूखे थें, नहीं कोई हल चलाया था।।
किया था खेत शोधन तो वहाँ पर सीत टकराया।
मिला था बंद घट जिसमें, जनक ने अर्भ को पाया।।
यही बैशाख नवमी शुक्ल की है, जानकी नवमी।
दिखाने राह दुनिया को, कभी आयी जहाँ लक्ष्मी।।
जनक के राज में आकर, जगत को राह दिखलायी।
वही सीता, वही लक्ष्मी धरा पर आज है आयी।।
मनाते हैं जहाँ उल्लास से हम-सब समझ नवमी।
सभी संस्कार का आरंभ सिखलाती सदा नवमी।।
सिरध्वज सह सुनयना का हृदय झंकार है नवमी।
धराशायी बुराई, नेह कोमल धीर है नवमी।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978
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