आयी जब से जालिम सर्दी
सबका जीना मुश्किल कर दी।
छाया है चहुंओर कुहासा
देखो सर्दी की बेदर्दी।
सन सन करती पछुआ हवाएं
कांप रही है पूरी धरती।
मौसम लगता बौराया सा
कभी लगे हैं साथी फर्जी।
सूरज बाबा लगे खफा से
नहीं पहनते अपनी वरदी।
सहमे सहमे लोग सभी हैं
दिखलाता कोई हमदर्दी।
कोई इसका कान मरोड़ो
सबक सिखाए अब तो जल्दी।
कट कट बजते दांत हमारे
उफ़ कितनी है जालिम सर्दी।
मीरा सिंह “मीरा”
+२, महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय डुमराँव जिला-बक्सर, बिहार
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