विधा:-रूप घनाक्षरी
आनंद की तलाश में,
भटकता यहाँ-वहाँ ,
पर द्वंद साथ लिए,घूम रहा गोल- गोल।
चल कर थक गया,
छाया में आराम किया,
मंजिल है दूर अभी,अपने को रहा तोल।
बीत गई निशा काल,
निकला कारवाँ संग,
भीड़ में भटक गया,वक्त का समझा मोल।
अज्ञानता नाश कर,
मोह माया परिहार,
एकांत में रह कर,ज्ञान चक्षु अब खोल।
एस.के.पूनम।
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