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ज्योति-पर्व दीपावली- गीत

ज्योति-पर्व दीपावली- गीत

हर्षित आज सभी नर-नारी, सुंदर सुखद तराना है।
अगणित दीप जलाकर भू का, सारा तिमिर मिटाना है।।

आज अमावस हार गया है, नहीं तिमिर टिकने वाला।
फैला यह नभ तक उजियारा, आज नहीं थमने वाला।।
गगन भेदती दीप-रश्मियाँ, नाश तिमिर का करती है।
अँधियारा तो जैसे छुपकर, डर-डर आहें भरती है।।
आया मौसम है मनभावन, लगता बहुत सुहाना है।
अगणित दीप जलाकर भू का, सारा तिमिर मिटाना है।।०१।।

पूनम सी चादर को ओढ़े, आज निशा जैसे आयी।
नहीं सुधाकर आज गगन में, फिर भी लगती हर्षायी।।
बनकर दुल्हन आज विभावरी, मनमोहक सी लगती है।
छूट रही जो यहाँ पटाखे, स्वागत जैसे करती है।।
गाँव-नगर घर का हर कोना, सबको आज सजाना है।
अगणित दीप जलाकर भू का, सारा तिमिर मिटाना है।।०२।।

एक दीप से जलें हजारों, जिससे बनती यह माला।
एक अकेला बना कांरवा, है अम्बर को छू डाला।।
दीपोत्सव का पर्व अनोखा, मन आनंदित है होता।
भेद सकें हम सभी लक्ष्य को, बीज हौसलों का बोता।।
माला दीपों की पहनाकर, घर-आँगन चमकाना है।
अगणित दीप जलाकर भू का, सारा तिमिर मिटाना है।।०३।।

जलकर दीपक राह दिखाता, सत्य सदा समझाता है।
हिम्मत कहाँ अँधेरे में जो, हरपल भय दिखलाता है।।
ज्यों चिराग जलने को होता, छिप जाती है अँधियारा।
हिम्मत के संबल को रखकर, बोलो किसने है हारा।।
दीपोत्सव पर्व उजाले का, सबको यह सिखलाना है।
अगणित दीप जलाकर भू का, सारा तिमिर मिटाना है।।०४।।

बैर-भावना त्याग सभी से, हृदय-प्रेम से हम भर लें।
कोई कुंठा रहे न मन में, तिमिर हरण ऐसा कर लें।।
कलुष भावना का अँधियारा, प्रेम रश्मियों से हरते।
मानवता की पावन लड़ियाँ, रिश्तों में संबल भरते।।
“पाठक” हर्षित होकर निकला, सबको गले लगाना है।
अगणित दीप जलाकर भू का, सारा तिमिर मिटाना है।।०५।।

गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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