जब कोई बेसहारा
पाता हो सहारा नहीं,
दिखावे को महलों में रखते हैं बाँध स्वान।
सोने हेतु काफी होता
दो गज जमीन जब,
क्या फायदा रहने को, भवन हो आलिशान?
रुपया, कंचन-धन
रखते तिजोरी भर,
दरवाजे से भूखा ही, लौट जाता मेहमान।
हजारों पुस्तकें रोज
पढ़ कर ज्ञानी हुए,
रह गए तोता बन, किसी को न दिया ज्ञान।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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