विद्या:-मनहरण घनाक्षरी
निकली है हल्की-हल्की,
कहीं धूप-कहीं छांह,
मौसम बेदर्द बना,पवन की चोट से।
ताक-झांक कर रहा,
बारबार झरोखों से,
लालिमा दिखती नहीं,बादलों के ओट से।
बूंदाबांदी होती रही,
भरा नहीं नदी-नाला,
खेतो में हरियाली है,सींचित है मोट से।
लगती सुबह शाम,
धूंध का चादर जैसी,
शीत का लहर चली,ठंड कटे कोट से।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
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