जलहरण घनाक्षरी छंद
जगत कल्याण खातिर
साक्षात् त्रिभुवन पति,
कौशल्या के गोद आए, रामजी बालक बन।
देवों के गुहार पर
पृथ्वी की पुकार सुन,
संत उपकार हेतु, दीनों के पालक बन।
जो नहीं आते ध्यान में
श्रुति वेद संज्ञान में,
दुनिया ने मान लिया, दशरथ के नंदन।
दुखियों को अपनाते
करुणा हैं बरसाते,
भक्त वत्सल प्रभु को, मैं करता हूं वंदन।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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