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दहलीज में सिमटी जिंदगी का सबक- विकास कुमार

Vikas kumar

भीड़ भरी इस दुनिया में कूप सन्नाटा पसरा है।
जब हवा ही कातिल हुई, फिर किस सांस का आसरा है।।

घुटनों के बल अब सत्ता है।
दंभ, ज्ञान,सामर्थ्य अब, लगता सूखा पत्ता है।।

दहलीजों में सिमट सबकी अब, घूंट रही जिंदगी है।
रक्षा को लेकर सबकी अब, प्रभु से हो रही बंदगी है।।

मौज की धुन से ज्यादा अब मातम का सायरन बजता है।
यहां वहां हर रोज कहीं, कफन का चादर सजता है।।

सुरसा सी चाहत,गुमान,जीत से, सोचो हमने क्या पाया है।
अब तो लगता सब माया है,बस बेशकीमती काया है।।

मानवता के इस महा संकट में अब यही सबक लेना है।
मैं की दौड़ छोड़ हमें,अब हम की हित में ही जीना है।।

विकास कुमार
सहायक शिक्षक
मध्य विद्यालय डगहर, गायघाट, मुजफ्फरपुर

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