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दीपों ने किया उजाला है – रामपाल सिंह ‘अनजान’

गाॅंव छोड़ बाहर देखा धरती अंबर काला है।

तब जाना इन दीपों ने, कितना किया उजाला है।।

आज कहाॅं बल तम के बाजू में, कुछ भी नहीं निशानी है।

हार-जीत होती आई है, हिंद की राम कहानी है।।

अयोध्या लौटते दीप जले थे,

तभी से फैला उजाला है।

तब जाना इन दीपों ने, कितना किया उजाला है।।

तेरह वर्ष बिताए पांडव, छि-छिप अपना जीवन।

चौदहवें में घर को लौटे, खुशियाली ने की नर्तन।।

घर-घर घी के दीए जलाए,

तभी से उड़े गुलाला है।

तब जाना इन दीपों ने, कितना किया उजाला है।।

विक्रमादित्य के यश बल से, सिंहासन हर्षाए थे।

शत्रु जिनके बल के आगे, बरसों तक थर्राए थे।।

इसी दिन से मनी दिवाली,

आज भी बनी निराला है।

तब जाना इन दीपों ने, कितना किया उजाला है।।

हार-जीत की यही कहानी सदियों से चलती आई।

टूटे मस्जिद मंदिर बन गए, अयोध्या फिर से मुस्काई।।

करोड़ों दीप जलेंगे आज भी,

आज खूब बने गजाला है।

तब जाना इन दीपों ने, कितना किया उजाला है।।

रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
मध्य विद्यालय दरवेभदौर, पंडारक, पटना

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