अगर दोस्त किसी के बन न सके,
तो दुश्मनी भी किसी से न पालिए।
ईर्ष्या, द्वेष, घृणा की आग में,
कभी जीवन को न गुजारिए।
जलाती पहले ईर्ष्या खुद को,
यह जिंदा हमें ही मारती।
दूसरों के साथ विद्वेष से,
पहले अपना ही भाग्य बिगाड़ती।।
दोस्त किसी के अच्छे बनें,
यह मानवता की शान है।
पर वही निभाए नहीं दोस्ती,
यह उसके सोच की पहचान है।।
जरा जरा-सी बात पर,
दुश्मनी कभी न पालिए।
कुछ निज दोष को भी,
समय रहते ही निहारिए।।
अति स्वार्थ की पहचान है,
दुश्मनी का खुला रास्ता।
फिर क्यों करें उससे दोस्ती,
जिसे केवल स्वार्थ से हो वास्ता।।
कुछ अंध स्वार्थी लोग होते,
लगे रहते निज स्वार्थ में।
सब कुछ वे भुला देते ,
न रखते भाईचारा परमार्थ में।।
हश्र होता उसका यहाँ पर,
न रहता है वह किसी काम का।
केवल बदनियती ही उसमें झलकती,
उसके स्वार्थ भरे अंजाम का।।
कभी आप भी इधर-उधर,
न ईर्ष्या की आग भड़काइए।
कभी द्वेष में विमल बुद्धि को,
न तनिक भी म्लान बनाइए।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर