Site icon पद्यपंकज

दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

दिव्य पर्व जन्माष्टमी, प्रकट हुए घनश्याम।
गले सुशोभित हार में, लगते हैं अभिराम।।

भाद्र पक्ष की अष्टमी, मथुरा कारावास।
कृष्ण लिए अवतार जब, छाया सौम्य उजास।।

मथुरा कारागार जब, कृष्ण लिए अवतार।
फाटक अपने खुल गए, हुआ जगत् उद्धार।।

रूप अलंकृत कृष्ण हैं, करिए नित प्रणिपात।
बाल रूप में दिव्य हैं, माखन शुभ सौगात।।

हृदय बसाएँ कृष्ण को, पाकर उच्च विचार।
प्रेम दया का भाव ही, जीवन का सुखसार।।

एक कृष्ण प्रभु नाम है, दूजा मन का कृष्ण।
निश्छल निर्मल भाव में, मन हो सदा सतृष्ण।।

केशव प्रेम प्रतीक हैं , यही प्रेम प्रख्यात।
इनके प्रेम घनत्व से, मिलती नव सौगात।।

प्रीति नहीं यदि कृष्ण में, लगता मन बेकार।
लगन लगाकर कृष्ण में, करिए सबसे प्यार।।

सकल सृष्टि सुंदर मुदित, पावन मथुरा धाम।
लिए जन्म श्री कृष्ण हैं, करने परहित काम।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज
भागलपुर, बिहार

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version