रिश्ता हो कायम सदा, भरते रहें मिठास।
अपनेपन का भाव रख, करिए सुखद उजास।।
ईश-याचना नित करें, रखें न कपट विचार।
निर्मल मन की भावना, देती खुशी अपार।।
संधिकाल के मास को, कहते जन आषाढ़।
हरियाली की भावना, करती हृदय प्रगाढ़।।
जीवन तो संगीत है, भरिए नित सुर-ताल।
गीतों प्रभु का वास है, रखें इसे चिरकाल।।
भारी गर्मी पड़ रही, जीव-जंतु बेहाल।
मेघराज करिए कृपा, चलकर दुलकी चाल।।
लगन लगाकर राम में, करिए सुंदर काम।
सद्कर्मों की राह से, जीवन हो अभिराम।।
माँ के चुंबन में छुपा, निश्छल अद्भुत सार।
नेह प्रीति वात्सल्य माँ, नित्य लुटाती प्यार।।
वृक्ष प्रकृति के अंग हैं, रखिए पुत्र समान।
इनकी रक्षा का रखें, सदा सर्वथा ध्यान।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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