धरती की पुकार
बचपन ने जहाँ देखा खेतों- खलिहानों को,
आज वहीं देख रहें उगते हुए मकानों को।
हवा में हर तरफ धुएँ का गुब्बार है,
साँस रुकने लगी हर शख्स लगता बीमार है।
विकास के नाम पर दुनिया क्या रौशन है ,
धरती का हो रहा हर तरफ शोषण है।
सुखे की चपेट में मर रहा किसान है,
दूषित हैं नदियाँ और शुष्क आसमान है।
सुनना ही होगा ये धरती की पुकार है,
संभल जा ऐ इंसा तू कितना नादान है
जल, थल नभ सब तो तुम्हारे साथ है,
सब्र कर ,हरियाली ला,इसका ही नाम विकास है ।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार
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