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धर्मचक्र प्रवर्तन – सुरेश कुमार गौरव

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सारनाथ की पुण्य धरा पर,

सूर्य उठा फिर ज्ञान गगन पर।

पाँच भिक्षु जब पास आए,

विनय भाव से शीश झुकाए॥

 

बुद्ध ने वाणी मधुर सुनाई,

करुणा, सत्य, नीति समझाई।

न मध्यम से हटना जीवन,

अति न भोग, न तप का बंधन॥

 

“दुख है, दुख का हेतु वही है,

तृष्णा ही बंधन की गही है।

दुख निरोध का पथ है सच्चा,

धम्म पथ ही जीवन अच्छा।”

 

अष्टांगिक वह मार्ग बताया,

सत्य-समाधि का दीप जलाया।

दृष्टि, संकल्प, वाणी, आचार-

सबमें हो निर्मल व्यवहार॥

 

सम्यक कर्म, सम्यक स्मृति से,

मन शुद्ध हो श्रद्धा प्रीति से।

सम्यक ध्यान जब लय में बहता,

मुक्ति का वह द्वार कहता॥

 

धर्मचक्र तब घूम पड़ा था,

मौन गगन भी झूम पड़ा था।

ब्रह्मा, इंद्र समेत सुरगण,

झुके बुद्ध के चरणों के संग॥

 

ज्ञान बना वह विश्व का प्रकाश,

बन गया जग में धर्म निवास।

ध्यान-सत्य की जय जयकार,

करुणा लहराए तब बारंबार॥

 

@सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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