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नर-नारी दोनों का जग में – लावणी छंद गीत- राम किशोर पाठक

नर- नारी दोनों का जग में – लावणी छंद गीत

प्रेम भाव जब रहता मन में, भरकर लगता गागर है।
नर- नारी दोनों का जग में, होता मान बराबर है।।

नर से नारी, नारी से नर, रिश्ता है पूरक जैसे।
ऊँच नीच का भेद अगर हो, बने वहाँ प्रेरक कैसे।।
कोई बहती बनकर नदियाँ, कोई बनता सागर है।
नर- नारी दोनों का जग में, होता मान बराबर है।।०१।।

एक धरा है दूजा अम्बर, मिलन बताती है जलधर।
जहाँ तपन है वहीं बरसना, सिखलाती मेघा चलकर।।
मिलन जहाँ होता दोनों का, कहते गंगा-सागर है।।
नर- नारी दोनों का जग में, होता मान बराबर है।।०२।।

रिश्तों की रखिए मर्यादा, जीवन सुंदर होना है।
जहाँ भेद है वहीं कलुष भी, कहता तब तो रोना है।।
दोनों होते सृष्टि की धुरी, जैसे राधा नागर है।
नर- नारी दोनों का जग में, होता मान बराबर है।।०३।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क- 9835232978

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