रोको ना मुझे टोको ना मुझे,
पंछी को पर फैलाने दो
है आज़ादी का स्वप्न मेरा,
मुझे पंख खोल उड़ जाने दो
तिनके चुन रखे हैं सपनों के,
मैंने परों पर अपने
ना परंपराओं की हद बताओ,
सपनों का महल बनाने दो
मैं जंगल जंगल, पर्वत पर्वत,
तन्हा भी उड़ सकती हूँ
जो कर सकता है बाछ वो,
हर काम मैं भी कर सकती हूँ
है हौसले मेरे बुलंद ,
ख़ुद को ज़रा आज़माने दो
रोको ना मुझे , टोको ना मुझे
पंछी को पर फैलाने दो
रस्ते में मेरे काले बादल,
तेज़ हवाएं आएंगी
जानती हूँ घनघोर घटाएं,
गर्जन से मुझे डराएगी
मैं करूँगी सामना उनका,
कदम तो ज़रा बढ़ाने दो
रोको ना मुझे , टोको ना मुझे,
पंछी को पर फैलाने दो
जीवन है ये संक्षिप्त बड़ा,
दुर्गम और विक्षिप्त बड़ा
पग पग पर है नई चुनौती ,
हर मोड़ पर नया प्रश्न खड़ा
हर प्रश्न का उत्तर दूंगी मैं,
आवाज़ तो ज़रा उढ़ाने दो
रोको ना मुझे, टोको ना मुझे,
पंछी को पर फैलाने दो
है आज़ादी का स्वप्न मेरा,
पंख खोल उड़ जाने दो
शिक्षिका: रिजवाना यासमीन उर्फ चांदनी समर
विद्यालय: उत्क्रमित मध्य विद्यालय रामपुर रतन मीनापुर मुज़फ्फरपुर