पक्षियों की भाषा भी बड़ी सुरमयी सी होती हैं!
इनके कलरव बोल से मन गीतमयी सी होती हैं!!
कभी इस डाल तो कभी उस डाल ये डोलती हैंं!
स्वच्छंद विचरण करते ये जीवन गान बोलती हैं!!
पर जब-जब इनके आशियाना तोड़े गए मन रोया!
बनाए नए आशियाने इसने अपना जीवन जिया!!
कोंपल से पंख सृजित हो,जीवन चक्र फिर दुहराया!
स्वच्छंद विचरण को निकल,कर्मरत हो दिखलाया !!
दाना चुग-चुग, चुन-चुन,प्रकृति कर्मचक्र समझाया!
प्रात:से संध्या काल की,जीवन रीत भी सीखलाया!!
हम मानवों ने इन्हें पाला पोषा,और आश्रय भी दिया!
इनके मुख से कलरव गान सुन, मन तृप्त भी किया!!
लेकिन हे मानव ! इन्हें क्यूं समझा उपभोग की वस्तु!
पाला,बेचा,खरीदा और बनाया,इन्हें भक्षण की वस्तु!!
कभी प्रकृति के मेल के इस अंश को, क्यूं मार दिया?
अपने मानव जाति को , इतना क्यूं कलंकित किया ?
प्रकृति ने हमें जो इन सा ,इतना सुंदर उपहार दिए हैं!
सबको समान जीवन जीने का,बड़ा उपकार किए हैं!!
सुरेश कुमार गौरव ,स्नातक कला शिक्षक,उमवि रसलपुर,फतुहा, पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
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