पावस की यह रात सुहानी – प्रदीप छंद गीत
बदल रहा है रंग धरा का, अच्छा होगा मान लो।
पावस की यह रात सुहानी, बन जाएगी जान लो।।
नारायण को आना होगा, करना जो कल्याण है।
जीवन सबको मिल जाएगा, रहते जो निष्प्राण है।।
बाल रूप में लीलाधर का, आना तय है ज्ञान लो।
पावस की यह रात सुहानी, बन जाएगी जान लो।।०१।।
नभ में दामिनी दमक रही हो, मेघ चलाते तीर हो।
काली चादर ओढ़ निशा भी, रौद्र रूप गंभीर हो।।
दर्शन करना कान्हा का है, मन में अपने ठान लो।
पावस की यह रात सुहानी, बन जाएगी जान लो।।०२।।
मथुरा कारावास पधारे, बाल रूप भगवान हैं।
खुला द्वार प्रहरी थे सोए, देख सभी हैरान हैं।।
गोकुल वासी चले बनाने, रोक जरा तूफान लो।
पावस की यह रात सुहानी, बन जाएगी जान लो।।०३।।
शेषनाग छत्री बन आए, बनकर जैसे ढाल हो।
कलकल करती यमुना जल भी, छूकर पैर निहाल हो।।
लगता है आज वसुदेव को, कृष्ण कहें संज्ञान लो।
पावस की यह रात सुहानी, बन जाएगी जान लो।।०४।।
मुरलीधर मनमोहन कान्हा, राधा के चितचोर हैं।
श्याम सलोने गिरधारी को, कहते माखनचोर हैं।।
“पाठक” का भय हरने वाले, कान्हा को पहचान लो।
पावस की यह रात सुहानी, बन जाएगी जान लो।।०५।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

