पुस्तक सच में ज्ञान का भंडार होती है
सतत् शिक्षा ज्ञान रुपी बहती गंगा होती है!
बचपन में पहली पुस्तक जब हाथ में आया
ज्ञान की पहली सीढ़ी वर्णमाला से पाया!
मातृभाषा हिन्दी होती है जन-जन की भाषा
संस्कृत देती श्लोक विधा से जननी भाषा!
इतिहास भूगोल होता इसमें है पूरा समाहित
अंकों की भाषा अंक गणित, संख्या सहित!
फिर अंग्रेजी भाषा कर देती भरपूर प्रशिक्षित
पर्यावरण विषय कर देती है ज्ञान से दीक्षित!
इसमें ज्ञान-विज्ञान का होता बहुत खजाना
शिक्षक इससे गतिविधियां कर सीखाते पढ़ाना!
“सु” से सुनना,”बो” से बोलना प से है पढ़ना
“लि” से लिखने की फिर आदत है डालना!
“सुबोपलि” पद्धति है न्यूनतम अधिगम स्तर
पुस्तक न होती तो नहीं सुधरता जीवन स्तर!
पुस्तक विद्यालय की होती है ज्ञान का सागर
बच्चे सीखते-समझते जैसे हो गागर में सागर!
पुस्तक होती जीवन मार्ग में सबकी पूरी सहायक
बच्चे ज्ञान अर्जन कर आगे बन जाते अध्यापक!
पुस्तक बनाती एक समय हमें आत्मनिर्भर
अर्थोपार्जन का माध्यम बन जाते स्वनिर्भर!
शिक्षक,वैज्ञानिक, और बनते विधिवेत्ता
पुस्तक ही बनाती नेता-नेत्री और अभिनेता!
अत: पुस्तक सच में ज्ञान का भंडार होती है
सतत् शिक्षा ज्ञान रुपी बहती गंगा होती है!
सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक, पटना (बिहार)
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