हुआ सबेरा जाग उठा जीवन प्रभात!
धरा की दूब पर मोती स्वरुप ओस हैं पड़े
मंद-मंद वयार ताजगी के फूल खिले हैं अड़ें
ओस की बूंदें धरती का करे शीतल प्रभात!
हुआ सबेरा जाग उठा जीवन प्रभात!
विदा हुई रजनी, उषा का हुआ आगमन
जीव-जगत के जीव कर्मरत गाते अरुण गात
हरियाली हो प्रस्फुटित उद्यान कह उठे सुप्रभात!
हुआ सबेरा जाग उठा जीवन प्रभात!
पक्षियों के कलरव बोल सीखाते कर्म और धर्म
अरुणोदय काल कहता करो फिर से शुरुआत
कभी खत्म न होगी यह अनोखी प्रकृति प्रभात!
सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक उ.म.वि.रसलपुर,फतुहा,पटना(बिहार)
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित
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