छुपे हुए व्योम के पीछे ,
क्या तुम तारे ढूँढ रहे हो ?
या उजास के उजले चादर की ,
तुम सपने बुन रहे हो ।
क्या अन्तस् का यह उजास ,
या मन का यह अँधियारा ।
या तम की यह गहरी खाई है ,
या सुयश संस्कार तुम्हारा ।
सजग रहो तुम अपने पथ पर ,
यह स्वविवेक नित जागे ,
दिल मे सदा रखो सद्भाव ,
यह मन से कभी न भागे ।
कथनी करनी एक करो तुम ,
इससे कभी न नाता तोड़ो ।
लोभ , मोह में न पड़ो कभी तुम ,
न अपकार से नाता जोड़ो ।
जो छोड़ रहे सद्भाव मनुज ,
वे मानवता को भूल रहे हैं ।
बिगड़े बोल जिन जन के हैं ,
वे दानवता को ढूँढ रहे हैं ।
करनी तुम ऐसा कर जाओ ,
जिसे दुनिया देखती रह जाए ।
सुनती रहे सभी जन को ,
पर तुम्हें भुला न पाए ।
कौन क्या कर रहा धरा पर ,
कभी तुम इस पर ध्यान न देना ।
लक्ष्य तुम्हारा हो अभीष्ट ,
कभी तुम इसको भुला न देना ।
लेकर कुछ न जाओगे यहाँ से ,
जब जाना होगा – तब चल दोगे ।
मगर एक बात का ध्यान हमेशा ,
अपने निज मन कर लोगे ।
संपत्ति कुछ कम जमा करो ,
बेशक यह खूब चलेगा ।
पर कलंक की गठरी जब होगी ,
तब यह भारी खूब लगेगा ।
फ़ैसला का अधिकार तुम्हारा ,
दो में से क्या तुम्हें चुनना है ?
अपने ऊपर कलंक की गठरी को ,
या विमल यश चुनना है ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )