चलो आज सांस आयी है ,
बस्ते के बोझ से आज मुक्ति पाई है।
बस्ता मेरा भारी बहुत थक जाते थे हम
कंधे मेरे दुख जाते थे थक जाता था मन,
अब सप्ताह में एक दिन अपना भी दिन होगा
बोझिल बस्ते के भार से आज मुक्ति पायी है।
चलो आज सांस आयी है,
रोज सुबह मेरा बस्ता मुझको मुह चिढ़ाता था
अपने बोझ से मुझे दबा कर खूब वो इतराता था
स्कूल जाते जाते ही थक जाता था तन,
फिर पढ़ाई में तनिक लगता नही था मन,
आज कोई बस्ता नही बोझ से मुक्ति पाई है,
चलो आज सांस आयी है।।
पामिता कुमारी
शिक्षिका
कन्या मध्य विद्यालय शाहकुण्ड
भागलपुर।
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