छाई घटा घनघोर,
जंगल में नाचे मोर,
श्याम धन संग-संग, झूमे आसमान ये।
बागों में बहार आई,
तितली भी इठलाई,
बारिश की बूंदे साथ, कोयल की तान ये।
दिल में हिलोरे मारे,
किसानों के अरमान,
नदी-नाले, ताल-बाग, खेत खलियान ये।
ऊपर गगन बीच ,
हँसती यूँ दामिनी है,
चमक गरज चले,आए मेहमान ये।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि
म.वि. बख्तियारपुर, पटना’
0 Likes