बच्चे करें भागदौड़, जैसे होता घोड़ा दौड़,
कोई कीत-कीत कोई, खेलता कबड्डी है।
किसी की कमीज ढ़ीली, नया जूता पैंट नीली,
कोई पेन्हें कोट-शर्ट, कोई पेन्हें चड्डी है।
बिना चक्का दौड़े रेल, बालू से निकाले तेल,
पल में सवार होता सपनों की गड्डी है।
कोई दिखे लंबू-छोटू, कोई लगे भाई मोटू,
कोई खूब हट्ठा-कट्ठा,दिखे नहीं हड्डी है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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