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भारत विविधताओं में भी एकता का प्रतीक’-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar gaurav

भारतीय संस्कृति का सदा बजता रहा है, विश्व में डंका,
भारतीय जनमानस में क्या रहनी चाहिए कोई भी शंका?

जहां देश से भी ऊपर माना जाता है, एक संविधान,
यहां सभी जनों पर लागू होता है, यही एक विधान।

धर्मनिरपेक्षता की दी जाती है, पूरे विश्व में मिसाल,
फिर सभी धर्मों के प्रति, आदर सम्मान है बेमिसाल।

प्रकृति भी मानो देश के प्रति रहती है, सदा मेहरबान,
सभी विविधताओं में एकता रही है, भारत की पहचान।

ऋतुएं भी है यहां विविध,कभी जाड़ा,गर्मी और बरसात,
सीखाती जीने का सहज ढंग,फैलाती अनोखी बिसात।

रंग, रुप, भेष, भाषा, धर्म और पंथ चाहे हो अलग-अलग,
वसुधैव कुटुंबकम् की बात, हमें नहीं कर सकती विलग।

सदियों से सीखलाई जाती, गुरुजनों का करो सदा आदर
माता-पिता,पुत्र-पुत्री,मानवीय रिश्तों में हो भाव समादर।

परिवार और समाज की रिवाजों परंपराओं में सद्भावना,
सीखाती सुसंहिता का करें निर्वहन,यही रखनी है भावना।

फिर भी कुछ लोग हैं ऐसे, लगे रहते हैं, फैलाते अशांति,
बचना है इनसे, समाज और राष्ट्रहित का नाम है शांति।

जो फैलाते अंधविश्वास, अलगाव और करते भेदभाव,
ऐसे जन सदा जीवन जीते स्वार्थ में, नहीं चाहते सद्भाव।

शिक्षा मानव जीवन का बनना चाहिए, एकमात्र सोपान,
यही देती सदा सबको तत्त्व,मर्म और पंचतत्व का ज्ञान।

देश हमारा भारत प्यारा, नहीं सीखाता वैर और भेदभाव
वैसे कहीं अमृत है तो कहीं विष भी हैं, जो करते मोलभाव।

नदियों की कल-कल धारा, झरने देती बढ़ने के संदेश अमन,
मातृभूमि बना कर्मभूमि हमारा भारत, जग का अनोखा चमन।

भारतीय संस्कृति का सदा बजता रहा है ,विश्व में डंका
भारतीय जनमानस में क्या रहनी चाहिए कोई भी शंका?

_सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक, पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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