भ्रष्टाचार – तमाल छंद गीत
किया सभी ने सद्कर्मों से, बैर।
भ्रष्टाचार जहाँ फैलाया, पैर।।
मुश्किल करना होता अब तो, काम।
जीवन का अब अंग बना है, दाम।।
चाहत सबकी हो मेरा भी, नाम।
मौका पाकर वे भी बदलें, जाम।।
भ्रष्ट व्यवस्था पूछे सबकी, खैर।
भ्रष्टाचार जहाँ फैलाया, पैर।।०१।।
लक्ष्मी हर लेती है सबका, दोष।
दिया न जिसने उसपर आता, रोष।।
भरने में सब लगे हुए हैं, कोश।
लक्ष्मी ही है भरती सबमें, जोश।।
बने न हिस्सा जो इनका वह, गैर।
भ्रष्टाचार जहाँ फैलाया, पैर।।०२।।
कोई सपने चुरा रहा है, आज।
कोई करता भला बुरा है, काज।।
कोई समय कटौती करता, गौन।
कोई देख रहा होता है, मौन।।
वैसे ही करते हैं हरपल, सैर।
भ्रष्टाचार जहाँ फैलाया, पैर।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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