कृष्णाय नमः
विधा:-मनहरण घनाक्षरी
वक्त का पहिया घूमा,बेमिसाल पाँच साल,
मंच सुशोभित लेखन के कारीगरों से ।
कविता कहानियों की अनवरत प्रवाह,
निरंतरता अनगिनत बाजीगरों से।
शब्दों की लडियाँ सजी लेखकों के घर-द्वार,
मुक्ति मिला है द्वंद्ववाद के सौदागरों से।
खिलाये हैं लेखकों ने,नव विचारों के फूल,
सीखा है यहाँ मुहब्बत करना गैरों से।
एस.के.पूनम
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