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मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

टूटे रिश्ते


जिंदगी गुजर जाती,
यहां रिश्ते बनाने में,
गाँठ पड़ जाते यदि,
टूटे-रिश्ते जुड़ते।

खूब मजबूत रखें ,
संबंधों की बुनियाद,
बालू की दीवार बने,
घर नहीं टिकते।

प्रेम भी तारे की भांति,
दूर से चमकता है,
चेहरे के भाव नहीं,
छिपाने से छिपते।

हमेशा लगाएं ‘रवि,’
जख्मों पर मरहम,
कभी नहीं रखें हाथ,
रग जो हों दुखते ।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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