चमका जैन धरा पर तारा, वीर स्वराज पुकार,
अहिंसा का मंत्र सुनाया, बना जगत आधार।
त्याग, तपस्या, संयम-शक्ति, जिनका रहा प्रबोध,
महावीर ने खोल दिए, आत्मा के सब बोध।
राजमहल छोड़ा उन्होंने, पथ को चुन लिया,
सिद्धि-शिखर पर चढ़ने को, सब कुछ तज दिया।
दिगंबर व्रत, मौन तपस्वी, भावों की परवाज,
जीव-दया, समता-संदेश, उनका यही समाज।
“अहिंसा परमो धर्म:” था, उनका अमर कथन,
सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, थे जीवन के व्रतन।
निज-आत्मा की खोज में, जग को राह दिखाई,
जैन धर्म की लौ बनी, जिसने तम हर पाई।
चेतना के दीप जलाए, करके शुद्ध विचार,
अंतःकरण को निर्मल करके, पाया मोक्ष द्वार।
उनकी वाणी अमृत बनी, जीवन का संबल,
जिसने सुनी वही बना, निज अंतर में प्रबल।
चलो आज उनके पथ पर हम भी बढ़ें आगे,
करें सत्य, संयम का वंदन, बनें पथिक जागे।
महावीर के चरणों में श्रद्धा-पूर्ण प्रणाम,
जग में फैले शांति-सुधा, हो सारा कल्याण।
सुरेश कुमार गौरव
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)