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माँ की सीख- स्रग्विणी छंद – राम किशोर पाठक

स्रग्विणी छंद आधारित

माँ की सीख- बाल सुलभ

रोज माँ टोकती है सुधारो इसे।
दोष तूने किया है निहारो इसे।।
भूल कोई उसे है सुहाता नहीं।
रोज मैं भी उसे हूॅं बताता नहीं।।

चाहिए जो हमें माँग लेता सदा।
बात माँ जो कहे मान लेता सदा।।
मुश्किलें भी कभी है बढ़ाती यही।
छोड़ दो भी बुराई बताती यही।।

बोलती है बड़े हो करोगे इसे।
शिष्ट आचार तेरा दिखेगा किसे।।
प्रश्न सारे करेंगे सवाली सदा।
दोष मेरा लगे रोज खाली सदा।।

रोकना भी हमारा बना धर्म है।
टोकना तो हमारा यहाँ कर्म है।।
आज से हीं सुधारें यही मर्म है।
हो गये जो बड़े तो तुझे शर्म है।।

रोकती टोकती प्यार से बोलती।
साँस में है सदा प्रीत को घोलती।
हौसलों को हमारे बढ़ाती सदा।
जीतना सीख जाएँ बताती सदा।।

कान खींचा करे दोष मीचा करे।
नेह से अंक में रोज सींचा करे।।
कौन तेरे सिवा है सहारा कहो।
नेह आशीष दे जीतते हीं रहो।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978

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