सभी देवियों से बढ़कर
माँ ऊंचा है तेरा दर्जा,
नहीं उतार पाऊंगा कभी
जीवन भर मैं तेरा कर्जा।
पहली बार जो आंख खुली
तब दुनिया ने भरमाया था,
प्रसव वेदना को भूलकर,
सीने से हमें लगाया था।
माँ ने मुझे कर धर कर
चलना कभी सिखलाया था,
मेरी एक आह पर अपनी
करुणा भी दिखलाया था।
इस भूमंडल में लाखों होंगे
तारे ,नक्षत्र और सूर्य,व्योम,
दुनिया में रिश्ते हैं लाखों
तुम सा ना कोई सुधा-सोम।
मां की ममता हरदम देती
है हमें सदा शीतल छाया,
नमन पुनीत उस प्राणी को
जिसने दुनिया में हमें लाया।
कैसे भी निज संतानों पर
ममता होती निष्काम तेरा,
हे देवी! चराचर की जननी
स्वीकार करो प्रणाम मेरा।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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