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मेरी अभिलाषा- जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

मैं पंछी बन उन्मुक्त गगन में,
दुनियां का भ्रमण करुं।
काली-घटा की बलखाती
बादल में भींग जाऊं।।
यह मेरी अभिलाषा है।
मैं सूर्य के प्रकाश की तरह,
प्रकाश-मान हो जाऊं।
चांद सितारों की तरह ,
चमकता रहुं ।।
यह मेरी अभिलाषा है।।
दिल के मंदिर में,
चिंगारी बनके वो, समां जाए ।
और मैं जलता हुआ, चिराग बन जाऊं।।
यह मेरी अभिलाषा है।
मैं तपता हुआ रेगिस्तान,
मात्र हूं।
वो सिर्फ करुणा की,
एक बूंद बरसा दे ।।
तो मैं समंदर बन जाऊं।
यह मेरी अभिलाषा है।।
मैं बागों का झुलसा हुआ,
फूल की कलियां मात्र हूं।
वो सिर्फ भंवरे बनके,
कलियों का आलिंगन करें।
यह मेरी अभिलाषा है।।
मैं फिजाओं के संग,
काली घटा बन जाऊं।
वो सिर्फ बिजलियां बनके चमकती रहे।
फिर मैं बरसात कराऊं।।
यह मेरी अभिलाषा है।।
“मैं तो दरिया हूं”
मगर मैं ख़ामोश हूं ।
वो सिर्फ कश्तियां बनकर,
साहिल को आवाज़ दे ।।
फिर मैं लहरों के- संग-इतराऊं।
यह मेरी अभिलाषा है।।

जयकृष्णा पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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