“हिंद” देश के वासी हैं हम
हिंदी हम सब की बोली है,
“माँ” जैसी ही प्यारी हिंदी
“माँ” जैसी ही भोली है।
पूज्य है जितनी जन्मभूमि
उतनी ही प्यारी भाषा है,
सारे जग में शान बढ़े
हम सब की यह अभिलाषा है।
हैं ,बहुतेरी भाषा जग में
पर इतनी मीठी कहीं नहीं,
“माँ” का दर्जा मिला इसे
और किसी को मिली नहीं।
सबसे पहले मूंह खोला तो
शब्द पहला “माँ” ही था ,
कितनी क्षमता है हिंदी तुझमें
गद् -गद् हो गई माँ की ममता।
अनगिनत इस देश की बोली
पर “तू “सबसे न्यारी है,
सर्वश्रेष्ठ मेरी मातृ-भूमि,
और श्रेष्ठ लिपि”देवनागरी”है ।
हे “हिंद” नमन तुझको मेरा
नमन है तेरी “भाषा” को ,
“तू” गर्व है सारे धरती का
तू समझ मेरी जिज्ञासा को।
“जिगर”देश तो”जुबान” है हिंदी,
जन-जन की पहचान है हिंदी
शब्दों का सोपान है हिंदी ।
भारत का अभिमान है हिंदी।।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार