कितने ज़ख्म सहे हैं हमने,
छांव छोड़कर धूप खाये है हमने।
“अपमान की आग से ”
झुलसा है बदन मेरा।।
“परीक्षाओं से निखरा है ”
चमन मेरा।
“ललाट के चमक से ”
हुंकार भरता हूं।।
इसलिए मैं तैयार हूं।।
“यह तूफान अब रुकेगा नहीं”
“तेरी फरेबी बातों से ”
अब झुकेगा नहीं।
“आग के शोले अब ”
सुलगने लगे हैं ।।
जलकर राख हो जाओगे,
मगर कुछ बचेगा नहीं।।
“मैं इन सारी बातों का”
ऐलान करता हूं ।
इसलिए मैं तैयार हूं ।।
कठोर दिल के समंदर में
“तैरने वाले ”
“कभी आंधियां भी ”
कश्तियां को डुबो देती है।
“गहराइयों के चपेट में रेत”
बनकर आने वाले ।।
“धाराओं के रवानी को”
चकनाचूर कर देती है।
इसलिए मैं तैयार हूं….।।
वो घटा बनकर गरजने वाले,
बरसात के महत्व को क्या जाने।
बिजलियां जिसकी फितरत हो,
उसकी सुंदरता वसुंधरा पर
आते-आते खो जाती है।
इसलिए मैं तैयार हूं,,….।।
जयकृष्ण पासवान