रंगोत्सव
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चली रंगोत्सव की बयार
सब पर छाया प्रेम खुमार
एहसास भर पिचकारी में
शब्द रंग उड़ाऊँ, मैं बेशुमार
प्रीत रस की छाई मीठी फुहार
भींगे एक दूजे संग सब नार
बहने लगी उन्मुक्त इंद्रधनुषी,
उमंगों की मंद-मंद रंगीली बयार
शाम सिंदूरी हो गई
पाकर रंगों की फुहार
इंद्रधनुष सी सजी वसुंधरा
धरा पर छाई रंगों की बहार
खुशियों के सागर में डूब गई
फ़ागुन में हुई मदमस्त संसार
चारों ओर छाया गुलाल ही गुलाल
भुला कर मन के द्वेष और भेद-भाव
एकदूजे को गले लगाकर, हुआ पावन ये संसार।
मधु कुमारी
कटिहार
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