जिन्दगी के पुरुषार्थ को ,
यथार्थ से जाना उन्हें ।
उस मानवी काया को ,
सबने लौहपुरुष माना जिन्हें ।
जिस पुरुष के पुरुषार्थ ने ,
भारत को एक कर दिया ।
रियासतों का मेल कर ,
देश एक सूत्र में पीरो दिया ।
कर्त्तव्य था इतना बड़ा ,
बिल्कुल असम्भव -दिख रहा ।
पर सरदार की असरदार से ,
सब सम्भव हुआ ; यह दिख रहा ।
जीवन जिया उस काल मे ,
वह स्वर्ण से कुंदन बना ।
भारत का भाग्य वह लिख दिया ,
माँ भारती – नंदन बना ।
प्रशासनिक क्षमता से पूर्ण मानव ,
सहज ही सज्ञान था ।
वह व्यूह रचना में निपुण ,
वह सहज ही द्युतिमान था ।
सरदार जी की भूमिका ,
हमेशा असरदार थी ।
लौह पुरुष के रूप में ,
और भी वजनदार थी ।
गिरिवर -सा पुरुषार्थ जिसमे ,
भारत मे जिसका सर्वत्र नाम है ।
उस दिव्य अलौकिक पुरूष को ,
नित शत – शत विनम्र प्रणाम है ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )