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वर्षा की बूंदे – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

मनहरण बाल घनाक्षरी
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टप – टप गिरे ऐसे,
लगता है मोती जैसे,
नभ से वर्षा की बूंदे
रिमझिम बरसे।

ताल भरे लाजबाव,
पानी करे छपा-छप,
मछली पकड़ने को
बालमन तरसे।

छाई घनघोर घटा,
दिखे मनोहारी छटा,
रह – रह आसमान
बिजुलियांँ चमके।

दिल में दबी है चाह,
किसी की ना परवाह,
बहुत दिनों के बाद
निकलें हैं घर से।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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