Site icon पद्यपंकज

विश्व पर्यावरण दिवस – कुण्डलिया- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

विश्व पर्यावरण दिवस- कुण्डलिया

चिंतन हरदम हम करें,तभी मिलेंगे त्राण।
लिए दिवस पर्यावरण,चलें बचाने प्राण।।
चले बचाने प्राण,जिंदगी पावन कर लें।
हरियाली को देख,हृदय में सावन भर लें।।
चलते कवि”अनजान”,प्रदूषण ढूॅंढे़ किंचन।
आगे बढ़कर हाथ,बॅंटाऍं करते चिंतन।।

जीवन-स्तर उठता गया,मिटी पुरानी रीत।
बिजली पानी सड़क से,बढ़ती सबकी प्रीत।।
बढ़ती सबकी प्रीत,नीर से नाता जोड़ें।
घर-घर में नलकूप,गंदगी पग-पग छोड़ें।।
कहते कवि”अनजान”,करें खुद से परिसीमन।
सबका हो उपकार,सुरक्षित कर जन-जीवन।।

कचरे के अब रूप हैं,सूखा गीला खास।
ठोस तरल जैविक भला,सब में है दुर्वास।
सब में है दुर्वास,इसे जल्दी निपटाऍं।
रोगालय है खास,यहाॅं ताला लगवाऍं।।
कहते हैं”अनजान”,और हैं कचरे-पचरे।
फेंक रसायन ढेर,हटेंगे व्यापक कचरे।।

आबादी की माॅंग पर,काटे जाते पेड़।
करते खूब मनुष्य हैं,परिसर आपस छेड़।।
परिसर आपस छेड़,इसी से बचना होगा।
अधिक लगाकर पेड़,हरित तल रचना होगा।।
कहते हैं”अनजान”,रुके जल की बर्बादी।
स्वर्गिक सुख आनंद,लेगीं बढ़ी आबादी।।

रामपाल प्रसाद सिंह अनजान
प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर पंडारक पटना

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version